After knowing Asli Kahani of Asharamji Bapu case, Reviews By Experts is worth listening.
SC lawyer Ishkarn Bhandari said that alleged incidence happened in Jodhpur & complaint is filed in Delhi, itself is a conspiracy against #Bapuji.
Side Effects Of Eating Potatoes
आलू एक ऐसी सब्जी है जिसे लगभग हर घर में रोज इस्तेमाल किया जाता है। आलू को आयुर्वेद में सबसे रद्दी कंद कहा गया है। आलू कई प्रकार के होते हैं जैसे लाल आलू, रसेट आलू, पीले आलू, बैंगनी आलू,नीले और अंकुरित आलू आदि । आलू में फाइबर, जिंक, आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसके अलावा आलू में कैरोटीनॉयड्स, फ्लेवनॉयजड्स और फिनोलिक एसिड जैसे एंटी-ऑक्सिडेंट्स होते हैं। आलू का सेवन सेहत के लिए नुकसानदायक होता है।
एनडीटीवी फूड में छपी एक खबर के अनुसार, आलू कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होता है । जबकि कार्बोहाइड्रेट की अधिक मात्रा कैलोरी बढ़ा सकती है, जिससे मोटापे का सामना करना पड़ सकता है ।
आलू यदि अंकुरित भी हो गया है तब भी उसका सेवन नहीं करना चाहिए। अंकुरित आलू या नीले रंग के आलू खाने से शरीर में एलर्जी की समस्या हो सकती है । यहां तक कि नीले और अंकुरित आलू जहरीले हो जाते हैं, जिनके सेवन से इंसान की मौत तक हो सकती है।
आलू पोटेशियम से भी समृद्ध होता है। पोटेशियम का सेवन हाइपरकलेमिया का कारण बन सकता है। इससे छाती में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, मतली और उल्टी जैसी समस्याएं हो सकती हैं ।
आलू का सेवन टाइप 2 डायबिटीज का कारण भी बन सकता है । आलू एक हाई ग्लिसेमिक खाद्य पदार्थ है। इसका पाचन जल्दी होता है और ब्लड शुगर के बढ़ने का खतरा होता है। इसलिए मधुमेह होने का भी खतरा होता है।
आलू का सेवन भी डायरिया का एक कारण बन सकता है।
आलू का सेवन गठिया के दर्द को बढ़ाता है ।
आलू का सेवन ब्लड प्रेशर की समस्या और बढ़ा सकता है ।
आपातकालीन स्थिति में यदि और कुछ खाने को ना मिले, तो आलू को अग्नि में भूंज कर खा सकते है ।
Avtaran Diwas of Pujya AsharamJi Bapu | Vishva Seva Satsang Diwas
संत श्री आशारामजी बापू के अवतरण दिवस (Incarnation Day) को पूज्य बापूजी के करोडो अनुयायियों द्वारा पूरी दुनिया में विश्व सेवा दिवस (Vishwa Sewa Diwas) के रूप में मनाया जाता है। अवतरण दिवस के अवसर पर पूज्य बापूजी के साधक विश्व भर में अनेक कल्याणकारी कार्य करते हैं।
450 आश्रमों से अधिक, 1400 से अधिक श्री योग वेदांत सेवा समितियां (SYVSS), 17,000 से अधिक बाल संस्कार केंद्र (BSK), हजारों युवा सेवा संघ (YSS), महिला उत्थान मंडल (MUM) और 8 करोड साधक परम पूज्य आशारामजी बापू का अवतरण दिवस हषॅौल्लास से मनाते हैं। अवतरण दिवस हर साल ‘विश्व सेवा दिवस’ के रूप में – “वसुधैव कुटुम्बकम्” यानी “पूरी दुनिया एक परिवार है” को ध्यान में रखते हुए मानवता की सेवा करने के लिए एक महान दिन है। बापूजी के अनुयायियों के बीच यह दिन जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
‘विश्व सेवा दिवस’ (विश्वव्यापी निःस्वार्थ सेवा दिवस)
“संत श्री आशारामजी आश्रम” की स्थापना 29 जनवरी 1972 को अहमदाबाद में साबरमती नदी के तट पर हुई और बाद में भारत और विदेशों में कई “संत श्री आशारामजी आश्रम” स्थापित हुए। यह महान दिन भारत में स्थित 450 से अधिक आश्रमों और न्यू जर्सी, वाशिंगटन डीसी (USA), टोरंटो (कनाडा) आदि जैसे विदेशों में स्थित विभिन्न परोपकारी गतिविधियों के साथ मनाया जाता है।
अखिल भारतीय श्री योग वेदांत सेवा समिति
1400 से अधिक श्री योग वेदांत सेवा समितियां दुनिया भर में विभिन्न परोपकारी गतिविधियों में कार्यात्मक हैं। विभिन्न भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में स्थित समितियों के अलावा, कनाडा, उत्तरी अमेरिका, दुबई, सिंगापुर, नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, हांगकांग, चिली, नैरोबी, टोरंटो, इंग्लैंड, आदि में समितियाँ और कई अन्य समितियाँ इस श्रृंखला में कार्यात्मक हैं।
पूज्य बापूजी से साधना की दीक्षा लेने से, लाखों शिष्यों ने दीक्षा के दौरान सिखाई गई विभिन्न जीवन-शैली को अपने जीवन में अपनाकर स्वयम् को लाभान्वित किया है और अपनी जीवन-शैली में सुधार किया है।
आश्रम और श्री योग वेदांत सेवा समितियों के अलावा, पूज्यश्री के मार्गदर्शन में संचालित संस्थाओं द्वारा कई समाजसेवी गतिविधियाँ की जाती हैं; ऐसी कुछ संस्थाएं और उनके द्वारा की जाने वाली गतिविधियां निम्नानुसार हैं :
- संत श्री आशारामजी महिला आश्रम : महिलाओं के उत्थान के लिए।
- महिला उत्थान मंडल : महिलाओं के उत्थान के लिए।
- बाल संस्कार केंद्र (BSK) : नैतिक, आध्यात्मिक और भौतिक रूप से बच्चों के उत्थान के लिए।
- युवा सेवा संघ (YSS) : नैतिक, आध्यात्मिक और भौतिक रूप से युवाओं के उत्थान के लिए।
- विभिन्न सत्संग द्वारा जागरूकता : सत्संग के माध्यम से, पूज्य बापूजी ने सभी को आत्मसात करके नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों और वेदांत ज्ञान को प्राप्त करने के तरीके सिखाए हैं – भक्ति योग, कर्म योग और ज्ञान योग; सरलतम तरीके से परम आनंद प्राप्त करने की ओर अग्रसर।
- साहित्य और मासिक पत्रिकाएँ : उनके तत्वावधान में 14 भाषाओं में लगभग 350 पुस्तकें प्रकाशित होती हैं; प्रकाशनों में ऋषि प्रसाद, लोक कल्याण सेतु आदि शामिल हैं। 27 लाख से अधिक लोग ऋषि प्रसाद मासिक पत्रिका के सदस्य हैं, जो आध्यात्मिक और सांसारिक प्रगति दोनों का मार्ग दिखाता है।
- ऋषि दर्शन आध्यात्मिक वीडियो
- युवाधन सुरक्षा अभियान : युवाओं की सुरक्षा के लिए इस तरह के अभियानों के माध्यम से 2 करोड़ से अधिक पुस्तकें ‘युवाधन सुरक्षा’ और ‘दिव्य प्रेरणा प्रकाश’ जनता के बीच वितरित की गई हैं।
- विद्यार्थी उज्ज्वल भविष्य निर्माण शिविर : विद्यार्थी उत्थान शिविर आयोजित किए जाते हैं, जिसके माध्यम से विद्यार्थी स्मृति शक्ति, एकाग्रता में सुधार करने की युक्ति सीखते हैं; इस प्रकार संकल्प में दृढ़ और राष्ट्र की सेवा करने में विवेकपूर्ण बनते है।
- वनवासी उत्थान केंद्र : आदिवासियों, वनवासियों और निराश्रितों के लिए; भोजन, आश्रय और आवश्यक चीजें प्रदान की जाती हैं।
- राशन कार्डों द्वारा उपयोगी सामग्री वितरण : पूज्य बापूजी के आश्रमों द्वारा गरीबों, विधवाओं और निराश्रितों को राशन कार्ड दिया जाता है, जिसके माध्यम से उन्हें हर महीने नियमित रूप से आजीविका के लिए उनकी बुनियादी जरूरत की चीजे मिलती हैं।
- गुरुकुल शिक्षा : उन्नत शिक्षा के साथ आध्यात्मिक और नैतिक मूल्यों सहित बच्चों का पोषण करना।
- सत्संग का प्रसारण : कुछ टीवी चैनलों पर प्रसारित होने के अलावा, पूज्य बापूजी के सत्संग इंटरनेट पर भी उपलब्ध हैं।
- प्राकृतिक आपदा और आपदा प्रबंधन : आश्रम ने हमेशा आपदाओं के दौरान अपनी मानद सेवाएं प्रदान की हैं, चाहे वह करोना काल हो, लातूर में भूकंप, हो, या भुज के भूकंप, गुजरात के अकाल, ओडिशा / गुजरात में बाढ़ या सुनामी संकट के मामले में।
- गौ-सेवाएँ : पूज्य बापूजी द्वारा मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों में सेंकडो गौशालायें स्थापित की गयी हैं।
- व्यसन-मुक्ति शिविर : इन शिविरों के माध्यम से लोग लाभान्वित होते हैं और शराब पीने, धूम्रपान करने और हानिकारक पदार्थ, जैसे गुटखा आदि खाने के दोषों को छोड़ देते हैं।
- संकीर्तन यात्राएं और प्रभात फेरी : पर्यावरण की शुद्धता के लिए और बुरे संकल्पों से छुटकारा पाने के लिए ‘हरिनाम संकीर्तन यात्रा’ और प्रभात फेरी आयोजित की जाती हैं, जिसके दौरान अच्छे साहित्य का वितरण भी किया जाता है।
- चिकित्सा सुविधा : आदिवासियों और वंचितों को आयुर्वेदिक, होम्योपैथिक, प्राकृतिक चिकित्सा और एक्यूप्रेशर उपचार मुफ्त प्रदान किए जाते हैं।
- वीडियो-सत्संग सत्र : आध्यात्मिक जागरूकता पैदा करने के लिए 8,000 से अधिक वीडियो-सत्संग केंद्र चलाए जाते हैं और इस प्रकार जीवन को सफलतापूर्वक जीने की कला सिखाते हैं।
- कैदी उत्थान केंद्र : कई राज्यों में कैदी उत्थान कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं और शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक उत्थान के संबंध में विभिन्न सत्संग सत्र आयोजित किए जाते हैं। इस तरह के कार्यक्रमों से लगभग 5,00,000 से अधिक कैदी लाभान्वित होते है। उन्हें भगवान का नाम लिखने के लिए नोटबुक भी दी जाती है, ताकि वे जेलों में समय का सदुपयोग कर सकें! जेल पुस्तकालयों को आश्रम से प्रकाशित पुस्तके, सीडी और कैसेट प्रदान की जाती है।
- हवन और यज्ञों द्वारा पर्यावरण संरक्षण : जब आज का वातावरण धुएं, धूल आदि के कारण अत्यधिक प्रदूषित हो जाता है, तो यह स्वाभाविक रूप से महा-मृत्युंजय हवन और पूज्य बापूजी के शिष्यों द्वारा किए गए अन्य यज्ञों द्वारा शुद्ध किया जाता है।
- अखंड ज्योत साधको के घर सात दिन तक पूजी जाती है ।
- श्री आशारामायण पाठ का अनुष्ठान किया जाता है ।
- जप यज्ञ चलाये जाते है ।
- भजन करो, भोजन करो और दक्षिणा पाओ कार्यक्रम चलाया जाता है।
अवतरण दिवस के दौरान होनेवाली सेवा की कुछ झलकियां :
- गरीबों, वंचितों और विधवाओं के बीच 11,00,000 किलो से अधिक भोजन प्रसाद वितरित किया जाता है ।
- 1,00,00,000 लीटर से अधिक मक्खन-दूध वितरित किया जाता है ।
- 4,00,000- से अधिक फल और आध्यात्मिक साहित्य रोगियों के बीच वितरित किया जाता है ।
- 6,00,000 से अधिक केलेन्डर वितरित किया जाता है ।
- 8,00,000 से अधिक आध्यात्मिक और प्रेरणादायक काँपिया ओर रजिस्टर वितरित किया जाता है ।
साधक जेल की “मंदिर की नाई” परिक्रमा करते है । विभिन्न आश्रमों में महा-मृत्युंजय मंत्र का जाप और यज्ञ किया जाता है। पूज्य बापूजी के स्वास्थ्य और दिर्धायु के लिए यज्ञ किया जाता है। भारत के साथ-साथ विदेशों में भी समितियों, बाल संस्कार केंद्र द्वारा श्री पादुका पूजन, श्री आशारामायण पाठ, वीडियो-सत्संग, भजन-कीर्तन जैसी परोपकारी गतिविधियों की जाती है ।
एक ब्रह्मज्ञानी संत को झूठे केस में फसाया गया है और सजा सुनाई गई है । सच्चाई एक-न-एक दिन जरुर ऊजागर होगी । भगवान सब को सद्बुध्दि दें ।
सब का मंगल – सब का भला |
ॐ नारायण… नारायण… नारायण… नारायण…
आशारामजी बापू
वैसे तो देश में आसारामजी बापू का नाम किसी के लिए भी नया नहीं हैं, उन्हें ब्रह्मज्ञान के कारण “संत श्री आसाराम जी बापू” या “संत श्री आशारामजी बापू” या “बापूजी” या “बापू” या “साईं” के नाम से लोग जानने लगे | भारत और बाहर कई देशों में भ्रमण करते हुए उन्होंने अपने सत्संग के माध्यम से वेदांत, आध्यात्म, भक्ति और मुक्ति का प्रचार-प्रसार किया | संत श्री आशारामजी आश्रम संस्था पिछले 50 वर्षों से कई समाज सेवा और चेरिटी का काम कर रही है | संस्था के दुनिया भर में 450 से ज्यादा आश्रम हैं, जिसका मुख्यालय अहमदाबाद में हैं | श्री योग सेवा समिति इन आश्रमों को सम्भालती हैं | इसे 1200 से भी ज्यादा क्षेत्रीय समिति के साथ संचालित किया जाता रहा हैं |
आशाराम बापू जी का जीवन परिचय : –
नाम – संत श्री आशारामजी बापू
वास्तविक नाम – श्री आसुमल थाउमल सिरुमलानी
मातृश्री का नाम – पूजनीय मह्न्गीबा
पिताश्री का नाम – श्री थाउमल सिरुमलानी
जाति – सिंधी
मातृभाषा – सिंधी
जन्मदिन – 17 अप्रैल 1941
जन्मस्थान – बेराणी गाँव, नवाब-जिल्ला, सिंध पाकिस्तान
पत्नी – पूजनीय माँ लक्ष्मी देवी
पुत्र – श्री नारायण साईं
पुत्री – पू. भारती देवी
गुरुदेव – पूजनीय ब्रह्मनिष्ठ साईं श्री लीला शाह जी महाराज
आशाराम बापू का जन्म और परिवार (Asharam Bapu Birth and Family)
आशाराम बापू का जन्म 17 अप्रैल 1941 को हुआ था| आशाराम बापू का वास्तविक नाम आसुमल है | सरनेम सिरुमलानी और हरपलानी दोनों हैं | आशाराम बापू थाउमल सिरुमलानी और मह्न्गीबा के पुत्र है | आशाराम बापू का झुकाव बचपन से ही आध्यात्म की तरफ था | माँ मह्न्गीबा उन्हें रामायण, भगवद गीता और अन्य पौराणिक कहानियां सुनाती थी, इससे उनका इश्वर के तरफ झुकाव द्रढ़ हुआ |
आशाराम बापू का जन्म स्वतंत्रता के पहले के भारत और अभी के पाकिस्तान के नवाब-शाह सिंध में हुआ था | देश के विभाजन के समय आशाराम बापू का परिवार सिंध छोड़कर गुजरात के मणिनगर में आकर बस गया | यहाँ आशाराम बापू ने मणिनगर की स्कूल मे ३ कक्षा पढाई की |
आशाराम बापू की शिक्षा और प्रारम्भिक जीवन (Asharam Bapu Education and Early Life)
आशाराम बापू बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे | रिसेस के समय जब अन्य बच्चे खलते थे, तब वे एक पेड़ के नीचे बैठकर ध्यान का अभ्यास करते थे | उनके अध्यापक भी उनसे प्रभावित रहते थे |
आशाराम बापू के हँसते चेहरे के कारण उनके अध्यापक उनको हंसमुख भाई कहते थे | स्कूल जाने के लिए पिता थाउमल जी उनकी जेब में काजू, पिस्ता और बादाम भर देते थे और आशाराम बापू ये सब कुछ अपने सहपाठियों को बांट के खातें थे | आशाराम बापू दिन मे माता को मदद करते थे और रात में अपने पिता के पैर दबाते थे और मालिश करते थे | इस तरह “ मातृ देवे भव : पितृ देवे भव : “ के सिद्धांत को चरितार्थ कर दिखाया |
जब आशाराम बापू ध्यान के लिए अपनी आँखे बंद करते थे, तब माँ मंगीबा अपने बेटे के सामने माखन-मिश्री रख देती थी, और उनसे कहती कि देखो तुम्हारे ध्यान करने के कारण भगवान ने तुम्हे यह प्रसाद भेजा हैं । आशाराम बापू कई घंटों तक छोटे से कमरे में गहन ध्यान में मग्न रहने लगे ।
आशाराम बापू की युवावस्था –
आशाराम बापू के बचपन में ही उनके पिता की मृत्यु हो गयी, पिताजी की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने ध्यान का समय और बढ़ा दिया और भगवान की खोज में खुदको समर्पित कर दिया । आशाराम बापू जब युवास्था तक पहुंचे, तब तक उनकी अपनी आध्यात्मिक शक्तियां काफी बढ़ गई थी, जिसका प्रभाव उनके आस-पास के लोगों पर भी होने लगा था ।
आशाराम बापू के परिवार को ये चिंता हुयी कि वे कही साधू ना बन जाए, इसलिए उन्होंने उनके लिए लड़की खोजकर उनकी सगाई तय कर दी, लेकिन शादी के 8 दिन पहले आशाराम बापू अपने घर से रवाना हो गये और उनके परिवार ने उन्हें भरूच के अशोक आश्रम से खोज निकाला और उन्हें वापिस घर ले आये, और लौटते ही उनकी शादी लक्ष्मी देवी से करा दी गई |
आसुमल जी अभी बापू बने नहीं थे, उन्होंने अपनी पत्नी को समजाया कि उनका लक्ष्य इश्वरप्राप्ति है और वे लक्ष्य पूरा होने के बाद ही गृहस्थ जीवन बितायेंगे |
आध्यत्मिक शास्त्रों को समझने के लिए उन्होंने संस्कृत स्कूल में दाखिला लिया और वहा एक श्लोक सुना |
“आशा छोड़ नैराशाव्लम्बित
उसकी शिक्षा पूर्ण अनुष्ठित |”
इस श्लोक ने उनके जीवन को भगवान की खोज की तरफ तीव्र गति से मोड़ दिया और वे परिवार छोड़कर इश्वर की और चल पड़े |
आशाराम बापू की आध्यात्म यात्रा (journey to Spirituality)
अपने परिवार को छोड़ने के बाद आशाराम बापू घने जंगलों, पहाड़ों, गुफाओं और मंदिरों में आध्यात्म और योग का अभ्यास करते थे | इसी दौरान केदारनाथ में पूजा करवाई तब पुजारी ने करोड़पति बनने का आशीर्वाद दिया तो उन्होंने दुबारा पूजा करवा के इश्वर प्राप्ति का आशीर्वाद पाया |
इसके बाद आशाराम बापू भगवान श्री कृष्ण की नगरी वृन्दावन गए, यहाँ उन्हें स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज के आश्रम जाने की प्रेरणा मिली, उन्हें गुरु के दर्शन के लिए आश्रम में 40 दिन तक इंतज़ार करना पड़ा, इसके बाद वहां उन्होंने खूब तत्परता से अपने गुरु की सेवा की |
आश्रम में उन्हें उबले हुए मूंग खाने को मिलते थे, वहां वे 4.5 फीट के कमरे में रहते थे . लीलाशाहजी ने आसुमल की 30 दिन और परिक्षा ली और आखिर में उन्हें अपना आशीर्वाद दिया | लीलाशाहजी ने उन्हें वापिस घर लौटने और वहीँ से आध्यत्म का अभ्यास करने को कहा |
घर वापिस लौटने के लिए उन्होंने मोती-कोरल की ट्रेन पकड़ी | लेकिन तब भी उसका मन सिर्फ अंतिम सत्य पर ही केन्द्रित था | उन्होंने नर्मदा के किनारे ध्यान करना शुरू किया | संत श्री लालजी महाराज उनके आध्यात्मिक प्रभाव से प्रभावित हुए और उन्होंने उनके लिए रामनिवास के दत्त कुटीर में रहने की व्यवस्था की | आशाराम बापू ने यहाँ पर 40 दिन का अनुष्ठान किया |
आशाराम बापू की माँ और पत्नी को जब ये पता चला कि वे मोती कोरल में हैं, तो उन्होंने वहां जाकर आश्राम से घर लौटने की विनती की, लेकिन उन्होंने कहा कि वे आश्रम में अनुष्ठान पूरा किये बिना नहीं आएंगे | इसके बाद उन्होंने सफलतापूर्व वह अनुष्ठान पूरा किया और लालजी महाराज के साथ पूरा गाँव उन्हें अहमदाबाद के लिए छोड़ने को स्टेशन पर आया | जैसे भगवान राम अयोध्या छोड़कर जा रहे थे, तब पूरा अयोध्या आंसू बहा रहा था, कुछ ऐसा ही द्रश्य उस समय मोती कोरल मे देखने को मिला था |
कैसे बने आसुमल से आशारामजी बापू (Asumal to Asharamji Bapu)
मोती कोरल से निकलकर जैसे ही ट्रेन ने मियागांव जंक्शन को पार किया, आशाराम बापू ट्रेन से कूद गए और उन्होंने मुंबई में स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज से मिलने के लिए ट्रेन पकड़ ली | आशाराम बापू मुम्बई पहुंचकर स्वामी लीलाशाह जी महाराज से मिले, वे आसुमल की परम सत्य को जानने की तीव्र जिज्ञासा को देखकर बहुत खुश हुए |
सम्वत 2021 में अश्विनी मॉस के दुसरे दिन को दोपहर 2.30 बजे आसुमल को श्री लीलाशाह महाराज की कृपा से आत्मसाक्षात्कार हुआ | ढाई दिन तक वे ईश्वरीय मस्ती मे जुमे | तदुपरांत श्री लीलाशाह महाराज ने डीसा गाँव मे एक आश्रम मे साधना करने का आदेश दिया |
डीसा के आश्रम में वे मिलने के लिए आने वालों को अध्यात्म सत्संग सुनते थे | यहाँ पर वे सात वर्ष रहे | उसके बाद आशाराम बापू साबरमती के मोटेरा गाँव में पधारे औए यहाँ पर भक्तों ने एक मोक्ष कुटीर बनायीं | धीरे-धीरे मोटेरा आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने लगी और ये छोटी सी जगह एक बड़ा आध्यात्मिक स्थान बन गया |
आशाराम बापू पर आरोप और उनसे जुड़े विवाद (Asaramand Controversy and Cases)
आशाराम बापू, उनके द्वारा चलने वाली संस्थाओं और उससे जुड़े लोगों पर कई बार कई तरह के आरोप लग चुके है | वास्तव मे आशाराम बापू के सत्संग से करोडो लोग लाभान्वित होते थे, और अंग्रेजी दवाइयों की बिक्री कम हो गयी, क्यूंकि लोग प्राणायाम और कुदरती उपचार से तन्दुरांत रहने लगे | अबोर्सन और महंगे ऑपरेशन के बिना ही बच्चे जन्मने लगे | और बाईपास सर्जरी , पथरी , अपेंडिक्स के ऑपरेशन के बिना कुदरती तरीके से स्वस्थ होने लगे | लोग कोल्ड ड्रिंक से परहेज करने लगे | गुटका और पान मसाला का बहिस्कार करने लगे | विदेशी चीजो के आकर्षण के बाहर आने लगे | इस कारन मल्टीनेशनल कम्पनीयों को करोडो का नुकशान होने लगा और वे बापू के खिलाफ साजिश करने मे लग गयी | आखिर साजिश वाले एक बार सफल हो ही गए फिर भी आशाराम बापू के भक्त ऐसे हैं जो जब-जब केस की सुनवाई चल रही होती थी तब-तब उनके जेल जाते समय उस सड़क की धूल को भी माथे पर लगाते दीखते थे और उनके समर्थन में हमेशा खड़े दिखाई देते थे |
आज भी बापू जी आनंद मे रह्ते है और आनंद ही बांटते है । हम सब बापूजी को चाह्ते है ।
पापमोचनी एकादशी
जो श्रेष्ठ मनुष्य ‘पापमोचनी एकादशी’ का व्रत करते हैं उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं । इसको पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है । ब्रह्महत्या, सुवर्ण की चोरी, सुरापान और गुरुपत्नीगमन करनेवाले महापातकी भी इस व्रत को करने से पापमुक्त हो जाते हैं । यह व्रत बहुत पुण्यमय है ।
महाराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से चैत्र (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार फाल्गुन ) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की तो वे बोले : ‘राजेन्द्र ! मैं तुम्हें इस विषय में एक पापनाशक उपाख्यान सुनाऊँगा, जिसे चक्रवर्ती नरेश मान्धाता के पूछने पर महर्षि लोमश ने कहा था ।’
मान्धाता ने पूछा : भगवन् ! मैं लोगों के हित की इच्छा से यह सुनना चाहता हूँ कि चैत्र मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है, उसकी क्या विधि है तथा उससे किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया ये सब बातें मुझे बताइये ।
लोमशजी ने कहा : नृपश्रेष्ठ ! पूर्वकाल की बात है । अप्सराओं से सेवित चैत्ररथ नामक वन में, जहाँ गन्धर्वों की कन्याएँ अपने किंकरो के साथ बाजे बजाती हुई विहार करती हैं, मंजुघोषा नामक अप्सरा मुनिवर मेघावी को मोहित करने के लिए गयी । वे महर्षि चैत्ररथ वन…
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महाविनाश की तरफ …. #WorldWar3Movie
Mankind created nuclear weapons & biological weapons only to destroy themselves. #WorldWar3Movie ????gives us guidelines to save ourselves from destructions.
How Nuclear Bomb Explosions Can destroy Humans & How Many NUKES Wilk Take To End Humanity, Find this True Information By Watching👇
#WorldWar3Movie
Due to👉
Urbanization
Deforestation
Industrialization
Most of Natural Resources exhausted ▶ Air,Water nd soil pollution ▶Hole occurred in Ozone layer▶ Global warming, Climatric changes-Storm n Tsunami, Earthquake etc
#WorldWar3Movie
आश्रम की औषधी
संजीवनी गोली
लाभ: यह गोली व्यक्ति को शक्तिशाली. ओजस्वी, तेजस्वी व मेधावी बनाती है | इसमें सभी रोगों को नष्ट करने की प्रचंड क्षमता है | यह श्रेष्ठ रसायन द्रव्यों से सम्पन्न होने से सप्तधातु व पंचज्ञानेन्द्रियों को दृढ़ बनाकर वुद्धावस्था को दूर रखती है | ह्रदय, मस्तिष्क व पाचन-संस्थान को विशेष बल प्रदान करती है | इसमें तुलसी-बीज होने से सभी उम्रवालों के लिए यह बहुत लाभदायी है |
वरुथिनी एकादशी
युधिष्ठिर ने पूछा : हे वासुदेव ! #वैशाख मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की#एकादशी होती है? कृपया उसकी महिमा बताइये।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन् ! वैशाख (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार चैत्र ) #कृष्णपक्ष की एकादशी ‘वरुथिनी’ के नाम से प्रसिद्ध है । यह इस लोक और परलोक में भी सौभाग्य प्रदान करनेवाली है । ‘वरुथिनी’ के व्रत से सदा सुख की प्राप्ति और पाप की हानि होती है । ‘वरुथिनी’ के व्रत से ही मान्धाता तथा धुन्धुमार आदि अन्य अनेक राजा स्वर्गलोक को प्राप्त हुए हैं । जो फल दस हजार वर्षों तक तपस्या करने के बाद मनुष्य को प्राप्त होता है,वही फल इस ‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत रखनेमात्र से प्राप्त हो जाता है ।
नृपश्रेष्ठ ! घोड़े के दान से हाथी का दान श्रेष्ठ है । भूमिदान उससे भी बड़ा है । भूमिदान से भी अधिक महत्त्व तिलदान का है । तिलदान से बढ़कर स्वर्णदान और स्वर्णदान से बढ़कर अन्नदान है, क्योंकि देवता, पितर तथा मनुष्यों को अन्न से ही तृप्ति होती है । विद्वान पुरुषों ने कन्यादान को भी इस दान के ही समान बताया है । कन्यादान के तुल्य ही गाय का दान है, यह साक्षात् भगवान का कथन है । इन सब दानों से भी बड़ा विद्यादान है । मनुष्य ‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत करके विद्यादान का भी फल प्राप्त कर लेता है । जो लोग पाप से मोहित होकर कन्या के धन से जीविका चलाते हैं, वे पुण्य का क्षय होने पर यातनामक नरक में जाते हैं । अत: सर्वथा प्रयत्न करके कन्या के धन से बचना चाहिए उसे अपने काम में नहीं लाना चाहिए । जो अपनी शक्ति के अनुसार अपनी कन्या को आभूषणों से विभूषित करके पवित्र भाव से कन्या का दान करता है, उसके पुण्य की संख्या बताने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं । ‘वरुथिनी एकादशी’ करके भी मनुष्य उसीके समान फल प्राप्त करता है ।
राजन् ! रात को जागरण करके जो भगवान #मधुसूदन का पूजन करते हैं, वे सब पापों से मुक्त हो परम गति को प्राप्त होते हैं । अत: पापभीरु मनुष्यों को पूर्ण प्रयत्न करके इस एकादशी का व्रत करना चाहिए । यमराज से डरनेवाला मनुष्य अवश्य ‘वरुथिनी एकादशी’ का व्रत करे । राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है और मनुष्य सब पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक में प्रतिष्ठित होता है ।
(सुयोग्य पाठक इसको पढ़ें, सुनें और गौदान का पुण्यलाभ प्राप्त करें ।)
नज़रिया अपना
“नज़रिया अपना अपना,,
दो दोस्त एक आम के बगीचे के पास से गुज़र रहे थे की उन्होंने देखा कुछ बच्चे एक आम के पेड़ के नीचे खड़े हो कर पत्थर फेंक कर आम तोड़ रहे हैं।
ये देख कर दोस्त बोला कि देखो कितना बुरा दौर आ गया कि पेड़ भी पत्थर खाए बिना आम नही दे रहा है।
तो दुसरे दोस्त ने कहा नहीं दोस्त तुम गलत देख रहे हाे..
दौर तो बहुत अच्छा है की पत्थर खाने के बावजुद भी पेड़ आम दे रहा है।
दिल में ख़यालात अच्छे हो तो सब चीज अच्छी नज़र आती है, और
सोच बुरी हो तो बुराई ही बुराई नज़र आती है…
नियत साफ है तो नजरिया और नज़ारे खुद ब खुद बदल जाते है,,,।
Sant Shri Asaram Bapu Ji Ashram News 2nd May 2015
दिल्ली में विशाल शोभा यात्रा
कल २५/५/१४ को दिल्ली में बापूजी की कृपा पात्र शिष्या तरुण दीदी के संग में शोभा यात्रा निकाली गयी थी | साधकों को बापूजी के समर्थन में खड़े देख कई लोगों को लगता होगा की ;
‘वाकई बापूजी को जेल में अन्याय पूर्व डाला गया हैं, नहीं तो आज भी इतने लोग क्यों बापूजी को मानते ?’
जो साधक गुरुदेव के सुप्रचार सेवा में जोर-शोर से डटे हैं उनको मेरा प्रणाम |
Divya Tatvik Satsang Shri Vashisth aur Bhagvaan Shankar Samvaad
Asaram Bapu Shivratri Satsang-Divya Tatvik Satsang Shri Vashisth aur Bhagvaan Shankar Samvaad
- Kis bhagvan ki puja turant fal deta hain
- Tatvik satsang se turant brahma gyan
- Shivji ke ashiv avtar hone par bhi ve pujniya kyu?
- Vahsith ji Shivji ko tatvik prashna puch rahein hain.
[youtube https://www.youtube.com/watch?v=_ZYoTl2wb98%5D
Satva gun ke fayde , Manushya aur tin Gun (Satsang)
Satva gun se bahut fayde hote hain, Kai Shaktiyaa-siddhiyaa aate hain. Ek vyakti thhe jo bhartiya sanskruti anusar sadhana karte thhe. Unki satvagun itni badi ki unke shishya (ex-president) gyani jair singh ho gaye thhe! Man mei adbhut shaktiya hain.Yeha baithe-baithe (jaise shri krishna,shri ram hote hain) dusr jagah pragat/pahuch sakte hain!
Satva gun badane hetu upay:
- Mantra Jap, Kuch omkar ka uccharan, chalet-firte jap.
- Sab mei bhagvat bhaav karne se.
- Kisika bhi ahit nahi sochna.
- Ninda chugli nahi karna.
- Krodh na karne se. Krodh se satva gun aur punyon ka haraas hota hain. Krodh aaye toh use dekho. Fir bhi jor maarta hain toh bhojan chaba-chabake karein. Iske bavjud bhi hota hon toh ungliya aise band karein [6:21] (nakhun haath ke gaddiyon mei lagein. Krosh se savva (1.25) ounce khun jalta hain! Garjana karke anushashn karna ek baat hain par krodh karke khun aur punya jalaana dusri baat hain.
- Nirabhimaan hoke sewa karna.
- Jo khaaye-piyue use bhagvaan ko arpit karke unka prasaad samjh ke karein.
- Jap shwaaso-shwas se kar sakte hain.
- Bhagvaan ka apne prati anugra manna arthaat bhagvaan ki kripa hain aise manna.
- Prarthna evam khan-paan satvik rakhna. Lahsun,baasi,pyaaj,daaru,maas,aadi se rajo-tamo gun badega . Agar maasik stri ne banaya hua khaaya toh satvagun ka adhik naash ho jaata hain. Satsahaastra ka sewan se bhi Satva gun bahut badta hain.
Satva gun ke fayde :
- Aanandit aur pritivan banenge. Saare satva guni ko sneh karte hain. Anand ke liye bahaar bhatakne ki jarurat nahi padti.
- Rakt shudh hoga. Svaasth badiya hoga.
- Santosh ,saralta aur shraddha toh uske ghar ki milkat hogi.
- Krodh ka abhaav hoga. Shama ka sadgun badega.
- Kasi bhi paristhithi ho hum dhairyavaan honge.
- Hinsak praani apni hinsa bhul jaayenge satva guni ke saamne.
- Sadacharan aur Samta ka dhan badega.
- Man evam Vyavhaar mei Lolupta (koi mujhe madad karein) nahi hogi. Bapuji ispar bolte hain ki unka evam lolupta ka dur-dur tak rishta nahi tha. Kahi baar bhojan ke liye bhagvaan ko challenge arte the ve; “Socha kahi nahi jaaoonga ,Yehi baithke , ab khaunga. Jisko garaj hogi aayega, sristi karta khud laayega!”
- Bhram nahi hoga. ‘Yeh kya hain?’ , ‘Samajh mei nahi aa raha’ ,aadi nahi hoga.Sab kuch samjha karega!
- Isht majbut hoga evam anisht nahi hoga.
- Man vash mei aasani se hoga. Dayaluta aapka sadgun banega.
Rajo guni ka swabhaav:
- jarajaraa baat mai sukhi-dukhi hoga, sukh ke liye bhatke ga.
- Nirdayta aur aasakti badegi.
- Ninda sunega-karega
- jhagdalu swabhaav,m ahankaari hoga.
- Maan ki vaasna hogi, Achcha kaam hoga fir bhi agar maan nahi
- milega toh usse bhi khisak jaayega.
- Apna satkaar chaahega par dusre ka nahi karega. Namrata nahi rakhega dusro ko namayega. jis kisi se vair karega.
- Santap se tapta rahega. Par dhan hadapne ki kai milegi agar pad toh ghus jaayega vaha.
- nirlajta, kutilta(yeh aisa,vah vaisa isprakaar ka dvet buddhi hoga.) Kaam vikar ,dvesh,etc rajo guni mai hoga.
Tamo gun
- Baasi khana, pyaj,lahsun,maas,sharab ke khaan-pin tatha shuddhi-ashuddhi nahi rakhne se tamogun badta hain.
- Din ko spuega aur raat ko jaga rahega.
- Mota-bhari rahega. Bin jaruri baatein jyada karega.Kaam mai taalamtol karega aur bigdega.
- Jo achcha ahi vah usse bura lagaega aur jo galat hai vah use sahi lagega , aisi buddhi maari jaati hain uski.
Satva, Rajo aur Tamo gun se nirala hota hain Brahm-gyaani. Unmei in guna ka koi farak nahi padta.
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Sabun se fayde bilkul nahi hota. Mail bharein nikalta hon vah, par uske nuksaan in faydon ko daba deta ha Ubtan se bahut fayda hota hain.
बापूजी का होस्पिटल में मीडिया द्वारा स्टिंग !
आप को यह जानकर हैरानी होगी की जहां चौबीसों घंटे पुलिस की रहती है निगरानी, बिना उच्च पदाधिकारियों की आज्ञा के जिनसे कोई मिल नहीं सकता ; उन्हीं संत श्री आशाराम जी बापू का चोरी छिपे एक मीडिया चैनल ने किया स्टिंग ऑपरेशन | कानून को ताक पर रखने वाली इस मीडिया ने मनघडंत आरोप लगाते हुए अपनी ही पकाई खिचड़ी जनता को परोसते हुए कहा है कि –बापू जी झूठी बीमारी का बहाना लगाकर अस्पताल में भर्ती हुए यह स्टिंग के दौरान एक पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा मीडिया कर्मी का कहना है | अब ज़रा ऐसी बचकानी बातें करने वाले मीडिया से पूछा जाये कि अपराधियों को पकड़ने वाली पुलिस ही बीमारियों को जानने और परखने लगे तो सरकार को जेल में बंद कैदियों की स्वास्थ्य सम्बंधी जिम्मेदारियां भी पुलिस को ही सोंप देंनी चाहिये चाहिय | अर्थात् जिन अहम् मुद्दों की जानकारी डॉक्टरों से लेनी चाहिए उन मुद्दों की जानकारी पुलिस कर्मियों से ली जा रही है |
बेहोश मीडिया को शायद यह भी नहीं पता कि लैब टेक्नीशियन मात्र सेम्पल एकत्र करके उनके परिणाम निकालता निकलता है जो उसके लिए केवल आकड़े हैं तथा उसकी विस्तृत जानकारी से वह अंजान होता है | ऐसे व्यक्ति की बातों को बिना किसी सबूत के मीडिया ने आँख मूंदकर दिखाया कि आशाराम जी बापू के ब्लड सेम्पल बिल्कुल पोज़िटिव हैं | यही नहीं TRP के लिए किसी भी खबर का खून करने वाली मीडिया ने कैसा मज़ाकिया आरोप लगाया कि बापू जी एक कटोरी बदाम खाते हैं | जिन वैज्ञानिक तथ्यों को एक आम व्यक्ति भी जानता है कि एक कटोरी बादाम तो हष्ट– पुष्ट आदमी शायद दो दिन में भी नहीं खा सकता और यदि खा भी ले तो उसे स्वस्थ से अस्वस्थ बनने में समय न लगेऔर बापू जी तो 75 वर्षिय हैं |
आशाराम जी बापू गत १० – १५ वर्षों से Trigeminal Neuralgia नामक भयंकर बीमारी से ग्रस्त चल रहे हैं | यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें व्यक्ति किसी भी छोटे – मोटे कारण यहां तक की ब्रश या दातुन करने पर या चहरे पर किसी तरह का तेल या सौन्दर्य प्रसाधन लगाने पर भी भयंकर जानलेवा दर्द से ग्रस्त होने लगता है | यह बीमारी इतनी घातक हैं कि इसका दर्द दिन में कई बार और कभी भी हो सकता हैं| आखों में लाल-गर्म लोहे की सलाखें डालने से या चेहरे को चाकू से काटने से भी इतना दर्द नहीँ होता होगा जितना इस बीमारी में होता हैं! इस बीमारी की जानकारी पुलिस प्रशासन तथा न्यायालय को पहले ही सभी सबूतों और रिपोर्टों सहित दे दी गई थी | लेकिन फ़िर भी उन्हें डॉक्टरी चिकित्सा देने में इतना विलम्ब किया गया | परन्तु बेहोश मीडिया ने इस खबर को जनता तक पहुँचाने की ज़रूरत ही नहीं समझीं |
यहाँ तक कि जनता को यह भी नहीं बताया गया कि अपने को पीड़िता बताने वाली तथाकथित लड़की और उसके माता पिता ने किस तरह जालसाज़ी करके कम उम्र बता कर न्यायालय तथा कानून के साथ धोखा किया | क्योंकि LIC पॉलिसी जो स्वयं लड़की की माँ द्वारा करवाई गई थी, उसमें में लड़की की उम्र 19 वर्ष से भी अधिक है तथा जोधपुर पुलिस द्वारा पेश प्राथमिक स्कूल का सर्टिफ़िकेट जिसमें उसकी उम्र 18 साल 9 महीने है | अतः सामान्य सा व्यक्ति भी आसानी से अंदाज़ा लगा सकता है कि इस बिबुनियाद केस में कितनी सच्चाई है | लेकिन पक्षपाती मीडिया यह सब जानकर भी झूठी खबरें दिखाकर जनता को गुमराह कर रही है |
संत आशारामजी बापू की दस हजार करोड की सम्पत्ति का सच्च !!
मातृ-पितृ पूजन दिवस विश्वव्यापी होगा । – पूज्य बापूजी
माँ-बाप को मत भूलना (मातृ-पितृ पूजन दिवस 14th February 2014)
मातृ-पितृ पूजन दिवस (Parent’s Worship Day) 14th February 2014
Ek Sachcha Prem Diwas-“Parents worship Day” A Divine inspiration of H.H. Asaram Bapuji
१४ फरवरी को ‘वेलेंटाईन डे’ नहीं ’मातृ-पितृ पूजन दिवस’ मनाये
14 फ़रवरी – आओ मनाएं मातृ-पितृ पूजन दिवस
Tum age badho, mera ashirwad tumhare sath hai – Sant Asharamji Bapu
Matru-Pitru Pujan Visheshank
Pujya Sant Shri Asharamji Bapu – Ki Jogi Re Ki Anmol Lila
मातृ-पितृ पूजन दिवस मनायें – (१४ फरवरी)
वेलेन्टाइन डे नहीं
मातृ-पितृ पूजन दिवस मनायें (१४ फरवरी) प्रिय आत्मन्, हरि ॐ दिनाँक १४ फरवरी को सभी साधक भाई-बहन अपने घरों में अथवा सामूहिक रूप से मातृ-पितृ पूजन दिवस मनायें। बाल संस्कार केन्द्र संचालक अपने केन्द्र में बच्चों के माता-पिता को बुला कर सामूहिक कार्यक्रम कर सकते हैं। पूज्यश्री के इस पावन संदेश को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचायें। अपने क्षेत्र के समाचार-पत्र में पूज्यश्री का संदेश प्रकाशित करवायें। कार्यक्रम का लिखित विवरण एवं समाचार-पत्र की कटिंग (यदि समाचार पत्र में दिया हो तो) बाल संस्कार विभाग, अमदावाद मुख्यालय को अवश्य भेजें। विश्व मानव की मंगल कामना से भरे पूज्य बापू जी का परम हितकारी संदेश पढ़ें- पढ़ायें। भारतभूमि ऋषि-मुनियों, अवतारों की भूमि है। पहले लोग यहाँ मिलते तो राम राम कहकर एक दूसरे का अभिवादन करते थे। दो बार राम कहने के पीछे कितना सुंदर अर्थ छुपा है कि सामने वाला व्यक्ति तथा मुझमें दोनों में उसी राम परमात्मा ईश्वर की चेतना है, उसे प्रणाम हो! ऐसी दिव्य भावना को प्रेम कहते हैं। निर्दोष, निष्कपट, निःस्वार्थ, निर्वासनिक स्नेह को प्रेम कहते हैं। इस प्रकार एक दूसरे से मिलने पर भी ईश्वर की याद ताजा हो जाती थी पर आज ऐसी भावना तो दूर की बात है, पतन करने वाले आकर्षण को ही प्रेम माना जाने लगा है। १४ फरवरी को पश्चिमी देशों में युवक युवतियाँ एक दूसरे को ग्रीटिंग कार्डस, फूल आदि देकर वेलेन्टाइन डे मनाते हैं। यौन जीवन संबंधी परम्परागत नैतिक मूल्यों का त्याग करने वाले देशों की चारित्रिक सम्पदा नष्ट होने का मुख्य कारण ऐसे वेलेन्टाइन डे हैं जो लोगों को अनैतिक जीवन जीने को प्रोत्साहित करते हैं। इससे उन देशों का अधःपतन हुआ है। इससे जो समस्याएँ पैदा हुईं, उनको मिटाने के लिए वहाँ की सरकारों को स्कूलों में केवल संयम अभियानों पर करोड़ों डालर खर्च करने पर भी सफलता नहीं मिलती। अब यह कुप्रथा हमारे भारत में भी पैर जमा रही है। हमें अपने परम्परागत नैतिक मूल्यों की रक्षा करने के लिए ऐसे वेलेन्टाइन डे का बहिष्कार करना चाहिए। इसे य़ुवाधन विनाश डे संबोधित कर इसके भयंकर परिणामों से अवगत कराते हुए परम पूज्य बापू जी कहते हैं- रोम के राजा क्लाउडियस ब्रह्मचर्य की महिमा से परिचित रहे होंगे, इसलिए उन्होंने अपने सैनिकों को शादी करने के लिए मना किया था, ताकि वे शारीरिक बल और मानसिक दक्षता से युद्ध में विजय प्राप्त कर सकें। सैनिकों को शादी करने के लिए ज़बरदस्ती मना किया गया था, इसलिए संत वेलेन्टाइन जो स्वयं इसाई पादरी होने के कारण ब्रह्मचर्य के विरोधी नहीं हो सकते थे, ने गुप्त ढंग से उनकी शादियाँ कराईं। राजा ने उन्हे दोषी घोषित किया और उन्हें फाँसी दे दी गयी। सन् 496 से पोप गैलेसियस ने उनकी याद में वेलेन्टाइन डे मनाना शुरू किया। वेलेन्टाइन डे मनाने वाले लोग संत वेलेन्टाइन का ही अपमान करते हैं क्योंकि वे शादी के पहले ही अपने प्रेमास्पद को वेलेन्टाइन कार्ड भेजकर उनसे प्रणय-संबंध स्थापित करने का प्रयास करते हैं। यदि संत वेलेन्टाइन इससे सहमत होते तो वे शादियाँ कराते ही नहीं। प्रेम दिवस (वेलेन्टाइन डे) जरूर मनायें लेकिन संयम और सच्चा विकास प्रेम दिवस में लाना चाहिए। युवक-युवती मिलेंगे तो विनाश दिवस बनेगा। कहाँ तो………. परस्परं भावयन्तु……… हम एक दूसरे को उन्नत करें। तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु…. मेरा मन सदैव शुभ विचार ही किया करे। इस प्रकार की दिव्य भावना को जगाने वाले हमारे रक्षाबंधन, भाईदूज जैसे पर्व और कहाँ यह वासना, अभद्रता को बढ़ावा देने वाला वेलेन्टाइन डे। यदि इसके परिणामों को देखा जाए तो आगे चलकर यह चिड़चिड़ापन, डिप्रैशन, खोखलापन, जल्दी बुढ़ापा और मौत लाने वाला दिवस साबित होगा। अतः भारतवासी इस अंधपरंपरा से सावधान हों! तुम भारत के लाल और लालियाँ (बेटियाँ) हो। प्रेम दिवस मनाओ, अपने माता-पिता का सम्मान करो और माता-पिता बच्चों को स्नेह करें। करोगे ने बेटे ऐसा! पाश्चात्य लोग विनाश की ओर जा रहे हैं। वे लोग ऐसे दिवस मना कर यौन रोगों का घर बन रहे हैं। अशांति की आग में तप रहे हैं। उनकी नकल तो नहीं करोगे? मेरे प्यारे युवक-युवतियो और उनके माता-पिता! आप भारतवासी हैं। दूरदृष्टि के धनि ऋषि-मुनियों की संतान हैं। प्रेम दिवस (वेलेन्टाइन डे) के नाम पर बच्चों, युवान युवतियों की कमर टूटे, ऐसे दिवस का त्याग करके तथा प्रभु के नाते एक दूसरे को प्रेम करके अपने दिल के परमेश्वर को छलकने दें। काम विकार नहीं, रामरस… प्रभुरस…. प्रभुरस…. मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। बालिकादेवो भव। कन्यादेवो भव। पुत्रदेवो भव। प्रेम दिवस वास्तव में सबमें छुपे हुए देव को प्रीति करने का दिवस है। देशवासी और विश्ववासी, सबका मंगल हो। भारत के भाई-बहनों! ऐसा आचरण करो, मेरे विश्व के भाई-बहनों का भी मंगल हो। उनका अनुकरण आप क्यों करें? आपका अनुकरण करके वे सदभागी हो जायें। सभी राष्ट्रभक्त नागरिकों को यह राष्ट्रहित का कार्य करके भावी सुदृढ़ राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देना चाहिए। कैसे मनायें मात-पितृ पूजन दिवस? इस दिन बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता को प्रणाम करें तथा माता-पिता अपनी संतानों को प्रेम करें। संतान अपने माता पिता के गले लगे। इससे वास्तविक प्रेम का विकास होगा। बेटे-बेटियाँ अपने माता-पिता में ईश्वरीय अंश देखें और माता-पिता बच्चों में ईश्वरीय अंश देखें। बच्चे-बच्चियाँ अपने माता-पिता का तिलक, पुष्प आदि के द्वारा पूजन करें। माता-पिता भी बच्चों को तिलक करें, आशीर्वचन कहें। माता-पिता का पूजन करते हैं तो काम राम में बदलेगा, अहंकार प्रेम में बदलेगा, माता-पिता के आशीर्वाद से बच्चों का मंगल होगा। बालक गणेषजी की पृथ्वी परिक्रमा, भक्त पुण्डलिक की मातृ-पितृ भक्ति, श्रवण कुमार की मातृ-पितृ भक्ति – इन कथाओं का पठन करें अथवा कोई एक व्यक्ति कथा सुनाये और अन्य लोग श्रवण करें। इस दिन बच्चे बच्चियाँ पवित्र संकल्प करें – मैं अपने माता-पिता व गुरूजनों का आदर करूँगा/करूँगी। मेरे जीवन को महानता के रास्ते ले जाने वाली उनकी आज्ञाओं का पालन करना मेरा कर्त्तवय है और मैं उसे अवश्य पूरा करूँगा/करूँगी। माता-पिता बाल संस्कार, युवाधन सुरक्षा, तू गुलाब होकर महक, मधुर व्यवहार – इन पुस्तकों को अपनी क्षमतानुरूप बाँटे बँटवायें तथा प्रतिदिन थोड़ा-थोड़ा स्वयं पढ़ने का तथा बच्चों से पढ़ाने का संकल्प लें। श्री गणेष, पुण्डलिक, श्रवण कुमार आदि मातृ-पितृ भक्त बालकों की कथाओं को नाटक के रूप में प्रस्तुत करें। (1) मात-पिता गुरू चरणों में प्रभु… (भजन दीपांजली कैसेट से) (2) भूलो सभी को तुम मगर… ऐसे भजनों का गान करें। इस दिन सभी मिलकर श्री आसारामायण पाठ व आरती करके बच्चों को मधुर प्रसाद बाँटें। नीचे लिखी पंक्तियाँ जैसी मातृ-पितृ भक्ति की कुछ पंक्तियाँ गत्ते पर लिख कर बोर्ड बना कर आयोजन स्थल पर लगायें। 1. बहुत रात तक पैर दबाते, भरे कंठ पित आशिष पाते। 2. पुत्र तुम्हारा जगत में, सदा रहेगा नाम। लोगों के तुमसे सदा, पूरण होंगे काम। 3. मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव। विश्वमंगल की कामना से भरे परम पूज्य बापू जी का परम हितकारी संदेश पढ़ें पढ़ायें। वेलेन्टाइन डे नहीं मातृ-पितृ पूजन दिवस मनायें। मातृ-पितृ-गुरू भक्ति अपनी भारतीय संस्कृति बालकों को छोटी उम्र में ही बड़ी ऊँचाईयों पर ले जाना चाहती है। इसमें सरल छोटे-छोटे सूत्रों द्वारा ऊँचा, कल्याणकारी ज्ञान बच्चों के हृदय में बैठाने की सुन्दर व्यवस्था है। मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव। माता-पिता एवं गुरू हमारे हितैषी है, अतः हम उनका आदर तो करें ही, साथ ही साथ उनमें भगवान के दर्शन कर उन्हें प्रणाम करें, उनका पूजन करें। आज्ञापालन के लिए आदरभाव पर्याप्त है परन्तु उसमें प्रेम की मिठास लाने के लिए पूज्यभाव आवश्यक है। पूज्यभाव से आज्ञापालन बंधनरूप न बनकर पूजारूप पवित्र, रसमय एवं सहज कर्म हो जाएगा। पानी को ऊपर चढ़ाना हो तो बल लगाना पड़ता है। लिफ्ट से कुछ ऊपर ले जाना हो तो ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। पानी को भाप बनकर ऊपर उठना हो तो ताप सहना पड़ता है। गुल्ली को ऊपर उठने के लिए डंडा सहना पड़ता है। परन्तु प्यारे विद्यार्थियो! कैसी अनोखी है अपनी भारतीय सनातन संस्कृति कि जिसके ऋषियों महापुरूषों ने इस सूत्र द्वारा जीवन उन्नति को एक सहज, आनंददायक खेल बना दिया। इस सूत्र को जिन्होंने भी अपना बना लिया वे खुद आदरणीय बन गये, पूजनीय बन गये। भगवान श्रीरामजी ने माता-पिता व गुरू को देव मानकर उनके आदर पूजन की ऐसी मर्यादा स्थापित की कि आज भी मर्यादापुरूषोत्तम श्रीरामजी की जय कह कर उनकी यशोगाथा गाय़ी जाती है। भगवान श्री कृष्ण ने नंदनंदन, यशोदानंदन बनकर नंद-घर में आनंद की वर्षा की, उनकी प्रसन्नता प्राप्त की तथा गुरू सांदीपनी के आश्रम में रहकर उनकी खूब प्रेम एवं निष्ठापूर्वक सेवा की। उन्होंने युधिष्ठिर महाराज के राजसूय यज्ञ में उपस्थित गुरूजनों, संत-महापुरूषों एवं ब्राह्मणों के चरण पखारने की सेवा भी अपने जिम्मे ली थी। उनकी ऐसी कर्म-कुशलता ने उन्हें कर्मयोगी भगवान श्री कृष्ण के रूप में जन-जन के दिलों में पूजनीय स्थान दिला दिया। मातृ-पितृ एवं गुरू भक्ति की पावन माला में भगवान गणेष जी, पितामह भीष्म, श्रवणकुमार, पुण्डलिक, आरूणि, उपमन्यु, तोटकाचार्य आदि कई सुरभित पुष्प हैं। तोटक नाम का आद्य शंकराचार्य जी का शिष्य, जिसे अन्य शिष्य अज्ञानी, मूर्ख कहते थे, उसने आचार्यदेवो भव सूत्र को दृढ़ता से पकड़ लिया। परिणाम सभी जानते हैं कि सदगुरू की कृपा से उसे बिना पढ़े ही सभी शास्त्रों का ज्ञान हो गया और वे तोटकाचार्य के रूप में विख्यात व सम्मानित हुआ। वर्तमान युग का एक बालक बचपन में देर रात तक अपने पिताश्री के चरण दबाता था। उसके पिता जी उसे बार-बार कहते – बेटा! अब सो जाओ। बहुत रात हो गयी है। फिर भी वह प्रेम पूर्वक आग्रह करते हुए सेवा में लगा रहता था। उसके पूज्य पिता अपने पुत्र की अथक सेवा से प्रसन्न होकर उसे आशीर्वाद देते – पुत्र तुम्हारा जगत में, सदा रहेगा नाम। लोगों के तुमसे सदा, पूरण होंगे काम। अपनी माताश्री की भी उसने उनके जीवन के आखिरी क्षण तक खूब सेवा की। य़ुवावस्था प्राप्त होने पर उस बालक भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की भांति गुरू के श्रीचरणों में खूब आदर प्रेम रखते हुए सेवा तपोमय जीवन बिताया। गुरूद्वार पर सहे वे कसौटी-दुःख उसके लिए आखिर परम सुख के दाता साबित हुए। आज वही बालक महान संत के रूप में विश्ववंदनीय होकर करोड़ों-करोड़ों लोगों के द्वारा पूजित हो रहा है। ये महापुरूष अपने सत्संग में यदा-कदा अपने गुरूद्वार के जीवन प्रसंगों का जिक्र करके कबीरजी का यह दोहा दोहराते हैं – गुरू के सम्मुख जाये के सहे कसौटी दुःख। कह कबीर ता दुःख पर कोटि वारूँ सुख।। सदगुरू जैसा परम हितैषी संसार में दूसरा कोई नहीं है। आचार्यदेवो भव, यह शास्त्र-वचन मात्र वचन नहीं है। यह सभी महापुरूषों का अपना अनुभव है। मातृदेवो भव। पितृदेवो भव। आचार्यदेवो भव। यह सूत्र इन महापुरूष के जीवन में मूर्तिमान बनकर प्रकाशित हो रहा है और इसी की फलसिद्धि है कि इनकी पूजनीया माताश्री व सदगुरूदेव – दोनों ने अंतिम क्षणों में अपना शीश अपने प्रिय पुत्र व शिष्य की गोद में रखना पसंद किया। खोजो तो उस बालक का नाम जिसने मातृ-पितृ-गुरू भक्ति की ऐसी पावन मिसाल कायम की। आज के बालकों को इन उदाहरणों से मातृ-पितृ-गुरूभक्ति की शिक्षा लेकर माता-पिता एवं गुरू की प्रसन्नता प्राप्त करते हुए अपने जीवन को उन्नति के रास्ते ले जाना चाहिए। माँ-बाप को भूलना नहीं भूलो सभी को मगर, माँ-बाप को भूलना नहीं। उपकार अगणित हैं उनके, इस बात को भूलना नहीं।। पत्थर पूजे कई तुम्हारे, जन्म के खातिर अरे। पत्थर बन माँ-बाप का, दिल कभी कुचलना नहीं।। मुख का निवाला दे अरे, जिनने तुम्हें बड़ा किया। अमृत पिलाया तुमको जहर, उनको उगलना नहीं।। कितने लड़ाए लाड़ सब, अरमान भी पूरे किये। पूरे करो अरमान उनके, बात यह भूलना नहीं।। लाखों कमाते हो भले, माँ-बाप से ज्यादा नहीं। सेवा बिना सब राख है, मद में कभी फूलना नहीं।। सन्तान से सेवा चाहो, सन्तान बन सेवा करो। जैसी करनी वैसी भरनी, न्याय यह भूलना नहीं।। सोकर स्वयं गीले में, सुलाया तुम्हें सूखी जगह। माँ की अमीमय आँखों को, भूलकर कभी भिगोना नहीं।। जिसने बिछाये फूल थे, हर दम तुम्हारी राहों में। उस राहबर के राह के, कंटक कभी बनना नहीं।। धन तो मिल जायेगा मगर, माँ-बाप क्या मिल पायेंगे? पल पल पावन उन चरण की, चाह कभी भूलना नहीं।। |
Geeta Sam Nahin Grantha (गीता सम नहीं ग्रंथ )- Pujya Asharamji Bapu
Geeta Sam Nahin Grantha (गीता सम नहीं ग्रंथ )- Pujya Asharamji Bapu
Lilashah Bapu Ji Se Prarthna – Sureshanandji
Kaliyug me shishya ki pariksha – Shri Sureshanandji
मनुष्य स्वयं ही अपने आप का शत्रु है और स्वयं ही अपने आप का मित्र भी है – पूज्य आसाराम बापूजी
Technique to become Healthy : Tribandh Pranayam- Sant Asharamji Bapu
Indian Classical Music & it`s effect on health – Sant Asaramji Bapu
Sharir se mamta hati to ise khilana pilana daan punya ho jayega- P.P.Sant Shri Asharamji Bapu
१०८ कुण्डी महायज्ञ व १००८ आशारामायण पाठ २ फरवरी को अहमदाबाद आश्रम में
Bhajan- Ek tumhi adhar sataguru – Shri Sureshanandji
Gajanan Maharaj ki adbhut samata aur divya lila prasang-Shegaon – Pujya Bapuji
Khali Samajh Le aur Sadacharan Kar len (Tatvic Satsang) – Sant Shri Asaram ji Bapu
भगवान कहीं बैठ कर दुनिया बनाता है ..ये वहम निकाल दो …..
जो भगवान नहीं हैं , वो हाथ खड़ा करो …..ऐसा नहीं मानना है कि कोई दो हाथ पैर वाला , चार हाथ पैर वाला कहीं बैठ कर दुनिया बनाता है ….
भगवान अगर हमसे अलग हैं तो व्यापक नहीं है …हम भगवान से अलग है तो हम जड़ हैं …जड़ होते तो बोलते कैसे ? …
उस भगवान को पाने का , उसके स्वरुप को जानने का बस एक बार लगन लग जाए …ये आत्मज्ञान की विद्या ऐसी दिव्य विद्या है कि इसमें शरीर को सताना नहीं है , किसी देव को बुलाना नहीं है …कुछ नया बनाना नहीं है …..केवल जो जैसा है वैसा समझ कर ….. परम तृप्ति … परम प्राप्ति …
Param Pad ( परम पद ) – Tatvic Satsang – Pujya Bapuji
परम पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू की अमृतवाणी सत्संग के मुख्य अंश :
* पर्त्रदंत तपस्या करके इंद्र देव को प्रकट कर दिया | वरदान में श्रेष्ठतम माँगा |
* श्रेष्ठतम पद वो है जिसे जानकर कुछ शेष नही रह जाता है |
* ब्रह्मज्ञान वो है जहाँ से ऊँचा कुछ नही और नीचे कुछ नही | यहाँ जीवतत्व का मूल जो है उसको ही जानना सर्वोपरी है |
* जहाँ से सूर्य, चन्द्र को प्रकाश मिलता है उसी में ठहरना वही परमपद है | जहाँ भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश विश्रांति करते हैं |
* जहाँ दुःख की पहुँच नही और सुख लालायित नही करता है वो परमपद है |
* संसार में सभी परिस्थितयाँ होते हुए भी आपको किसी परिस्थिति का असर ना हो, वो है ब्रह्मज्ञान |
* उस आत्मदेव को जानने से सभी पातको से मुक्त हो जाता है, सदा संतुष्ट रहता है | वो भगवान को प्यारा होता है | विगत-विकार हों तो टिकेगा नही |
* ब्रह्मज्ञानी की मत कौन बखाने | साधू उसे कहते हैं जिसने ये परमपद पा लिया |
* जो दीखता है वो अनित्य है | लेकिन जिससे दीखता है वो अदृश्य आत्मा है | वो अनंत है, अच्युत है |
* ४ प्रकार के प्रलय के बावजूद भी वो रहता है | आत्मदेव कभी नष्ट नही होता और वही असलियत में हम हैं |
* सत्य किसे कहते हैं ? जो आदि में था, अभी है, आगे भी रहेगा |
Vaishya Ki Putri Kanupatra ki Bhagwad Bhakti- Pujya Bapuji
Yuvtiyo ke liye 2 musibat hai 1 to unka saundrya or dusra unka yowan teen cheeze badi khatarnaak hai or badi hitkari hai youvan ,swasthya or dhan.. ye teno agar sukh bogne me lagte hai to tabah kar dete hai.. aj kal ke yuvaan bahar ke saundrya ko mahatva dekar andar ke saundarya ko nazar andaaz kar dete hai.. naak me kya bhara hai mans hai rakh hai kuch addiya hai sharir meky hai kuch adi haddi kuch khadi haddi
1 civil surgeon ke agrah se hum ceserion dekhne gaye the waha ka drishya dekh kar hi mujhe low BP ho gaya itna khatarnaak drishya tha.. ye sharir jo bahar se sundar dikhta hai andar thoda sa dekho to tauba hai..
Kanupatra is sharir ki pol jaankar bhagwan ki bhakt ban gayi thi.. vdarbh ke badshah ne uski sundarta ki sarahna sunkar raja ne mantri adi ko use lane bhej diya.. stri me nazar parakhne ka sadgun hota hai jaha bhi thodi nazar idhar udhar hui to wo smajh jati hai ye behan ke bhaav se baat kar raha hai ya kisi galat bhaav se wo turant savdhaan ho jayegi..jab mantri ne use chalne k agrah kiya to wo samajh gayi.. us samay womandir ke paas thi.. usne kaha me jaantu hu agar me nahi jaungi to aap mujhe bal poorvak le jaogelekin pahle mujhe jara mandir ke darshan kar lene dijiye..
Darshan karte karte prarthana karte karte wo aisi antaran ho gayi.. kipandurang me tumhri sharan hu.. ab tumhari sharan ayi hu or me dukhiyari hu.. sansaar ki sharan jaungi to mera dukh nahi mitega lekin tumhari sharan jaungi to mera dukh nahi tikega ye mujhe poora vishwas hai..sant vachan pramaa hai.. o bhagwan ki sharan jate hai uska dukh tikta nahi or jo sansaar ki sharan jate hai unka dukh mit ta nahi.. me terisharan ayi hu mere pandurang ab is kaam vikaar ke putle jaise sharir se mujhe kya lena? Mai tumko var chuki hu.. ab tumhari sati ko koi kami kaise le ja sakta hai.. sansaar ka pati mitra pita pati 1 sath nahi ho sakta lekin tum mere pati bhi ho pitabhi ho putra bhi ho bandhu bhi ho or guru bhi.. jo bhi sambandh mano lekin mujhe apne charno me le lo..ektak dekhte dekhte dekhte kanupatra wahi dhal gayi.. uski jeev rupi kyoti param vyapak pandurang tatva me mil gayi.. ghada foota to akash kaha gaya mahakash me mil gaya.. uske sharir ki antyesthi kar ke uski haddiya mandir ke dakshin bhaag me gaad di gayi.. jis se duniya ko pata chale ki jab dukh aaye to dukh hari hari ki sharan jao.. chahe sharir mito chahe dukh mito.. par tumhara dukh nahi tikega.. kanupatra ka to sharir na rahne ke baad sharir nahi tika lekin aisa jaruri nahi hai ki sab ka kanuptra jaisa sharir choot jaye usne sankalp kiya tha.. ki is kami purusho ke akarshan ka kendr tum le lo or mujhe apne me mila do.. jaisi apne sankalp ki dhara drad hoti hai bhagwan aisa kar dete hai.. pandurang ki moorti ke age aaj bhi kanupatra ki moorti khadi hai bhagwan ke darshan to bhakt karte hai lekin jo vaishya ka dhandha kar rahi hai uski putri ke bhi darshan log karte hai..
Raja Bharthari ne Gorakh Nath ji ki saari pariskshao me safal hokar sakshatkaar kar liya- Pujya Bapuji
Patni ki mrityu ke baad Raja Bharat Hari Gorakh nath ji ki sharan ho gaye- Pujya Bapuji
साधक उपवास और जेलभरो आंदोलन ना करे – पूज्य बापूजी
Gurudev Daya Kar Do Mujh Per ( Meditation guided by Pujya Asaram Bapuji)
Guruji Tum Chandan Hum Pani (Dhyan) – Sureshanandji
Parents Worship Day is for all religions and countries – Pujya Asaram Bapu ji
पूज्य बापूजी ने श्री कुमार स्वामीजी की सरलता को निवेदन करते हुए कहा -ये तो आपकी सरलता है; राजा की फ़ौज साधो की मौज !!
पूज्य बापूजी कहते हैं कोई नही चाहता चाहे वो हिंदू, मुसलमान, यहूदी, ईसाई कोई भी हो, नही चाहेगा की उनके बच्चे गलत रस्ते पर चले |
बापूजी कहते हैं कोई नही चाहता चाहे वो हिंदू, मुसलमान, यहूदी, ईसाई कोई भी हो, नही चाहेगा की उनके बच्चे गलत रस्ते पर चले | छत्तीसगढ़ सरकार ने कहा और करके दिखाया वेलेंटाइन डे के बदले मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में मनाया जाये |
Parents Worship Day is the way of upliftment of society – Brahmarishi Kumar Swamiji on Prerna Sabha
परम ऋषियों के ऋषि ज्ञाताओं के ज्ञाता तत्वदर्शी और जगत के कण-कण के रहस्यों के जानने वाले ओज देने वाले प्रज्ञा देने वाले हमारे महा तत्वेता परमपिता स्वरुप, नारायण स्वरुप साक्षात् नारायण सद्गुरु श्री आसाराम जी के चरणों में कोटि-कोटि नमन, कोटि-कोटि वंदन, कोटि-कोटि प्रणाम !!!
इन्होने केवल पल भर विचारा कि ऐसा हो पलभर सोचने मात्र से वो संत जो कहीं जाते ही नहीं है अपने आश्रमों से निकलते ही नही है; बड़े गर्व से भरे रहते हैं, बड़े प्रेम से भरे रहते हैं, बड़े मान मर्यादा के बिना जो आते ही नहीं हैं, आना संभव ही नही है एक पल में इनका सन्देश मिला तो कैसे बाढ़ की तरह एक दिन में इनके पास आ गए | ये निश्चय ही इनकी अपनी शक्ति है |
आप श्री ने आगे कहा – रावण यदि रामजी के खिलाफ नही जाता तो उन्हें कोई मार भी नही सकता था |
ऐसे ही बापूजी के हम सभी संत आशारामजी के साथ रहेंगे चाहे हमे जान भी क्यों ना देनी पड़े |
आज हम सरकार से प्रार्थना कर रहे हैं यदि बापूजी चाहे तो सरकार इनकी होगी |
जो इन संतो की बात नही मानेगा वो कहीं का नही रहेगा |
जिसने अपना जीवन तप में लगाया क्या वो समाज को लूटने की सोच भी सकते हैं ? यदि बापूजी आदेश दें तो एक दिन में हम सरकार बदल दें |
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